निकले हैं घर से मंजिल की ओर,
एक ओर हकीकत एक ओर ख्वाहिशों का छोर,
रुकते हैं राह में जब रात हो जाए,
एक डर है जहन में, यही मात ना हो जाए।
by
VINOD SUTHAR
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